उम्मीद। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ‘के-2’ को सख्त सर्दी में फतह करने की हमारी जिद। हर साल सर्दियों में इसे फतह करने पर्वतारोही निकल पड़ते हैं। भले ही आज तक कोई सफल न हो पाया हो। इस बार सेवन समिट ट्रैकिंग का 55 सदस्यीय दल दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची (8,611 मीटर) चोटी को जीतने निकला है।

इस एक्सपीडिशन का नाम है- मिशन इम्पॉसिबिल। इस मिशन दल के मुखिया छांग दावा शेरपा ने गिलगित बाल्टिस्तान से फोन पर बताया- ‘दुनिया में 8 हजार मीटर से अधिक ऊंचे 14 पर्वत शिखर हैं। माउंट एवरेस्ट सहित 13 पर्वत ऐसे हैं, जहां सर्दियों में भी पर्वतारोही चढ़ाई में सफल हुए हैं। लेकिन के-2 अभी तक अजेय है।

हम यात्रा शुरू कर चुके हैं। उम्मीद है फरवरी के तीसरे हफ्ते तक अपने मिशन को पूरा कर चुके होंगे। हमारे दल में 28 नेपाली शेरपाओं के अलावा 27 विदेशी (अमेरिका, इंग्लैंड, नीदरलैंड्स, बुल्गारिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड, फिनलैंड और ग्रीस) पर्वतारोही हैं।’ सफर की चुनौतियों के बारे में छांग बताते हैं- ‘पर्वत शिखर चीन-पाक सीमा पर काराकोरम पर्वत श्रृंखला में है।

चोटी पर 6000 मीटर तक चट्‌टानें और फिर बर्फ हैं। तापमान भी -25 से -45 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। पर्वत हमारे लिए नया नहीं है, लेकिन के-2 अलग ही रोमांच है। यहां कैंप-2 से ही खतरा शुरू हो जाता है, जो बॉटलनेक तक बढ़ता जाता है। पर्वतारोहियों के दिमाग में फिसल जाने का डर हमेशा बना रहता है। यहां सफल होने की संभावना सदा ही 30% से कम ही रहती है, भले ही पहले से कितनी ही तैयारियां क्यों न कर ली गई हों।

सेवन समिट की एक टीम कैंप 2 यानी 6750 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच चुकी है।

दावा: दल फतह नहीं कर पाया तो आगे संभव नहीं
8 हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले सभी शिखर पर विजय पाने वाले सेवन समिट ट्रैक के चेयरमैन मिंगमा शेरपा कहते हैं- ‘के-2 को फतह करने की संभावना हमेशा से कम ही रही है। यदि यह दल शिखर पर नहीं पहुंच सका तो फिर कोई नहीं पहुंच पाएगा।’ 1953 में अमेरिकी पर्वतारोही जॉर्ज बेल ने कहा था- ‘के-2 बर्बर पहाड़ है, ये आपको मारने की कोशिश करता है। दुनिया के पांच सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों में से के-2 सबसे खतरनाक है। शिखर पर पहुंचने वाले हर चार में से एक पर्वतारोही यहां अपनी जान गंवा बैठता है।’

के-2 सबसे बर्बर पहाड़; चार में से एक पर्वतारोही गंवा देता है अपनी जान

  • 8611 मीटर ऊंची चोटी में 6 हजार मीटर तक चट्‌टानें और फिर बर्फ; यहां का तापमान भी -25 से -45 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
  • 55 सदस्यीय दल दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी के-2 को फतह करने निकला है; इनमें 28 नेपाली शेरपा और 27 विदेशी पर्वतारोही हैं।
  • 14 पर्वत हैं दुनिया में जो 8 हजार मीटर से ज्यादा ऊंचे हैं; माउंट एवरेस्ट सहित 13 पर्वत ऐसे हैं, जहां सर्दियों में भी पर्वतारोही चढ़ाई में सफल हो चुके हैं।
  • 21 लाख रुपए कम से कम खर्च आता है एक पर्वतारोही का; जबकि पाकिस्तान सरकार पर्वत फतह करने वालों को काफी रियायत भी देती है।

चुनौती: 3.5 किमी खड़ी ऊंचाई; 2 माह रहना होगा

  • सेवन समिट नेे दो टीमें बनाई हैं, जो बारी-बारी बेस कैंप से शिखर की ओर बढ़ेंगी। टीम ब्लैक पिरामिड के पास कैंप-3 बनाएगी और कैंप-4 की ओर बढ़ जाएगी। अधिकांश हादसे कैंप-3 पर होते हैं और चढ़ाई यहीं समाप्त हो जाती है।
  • बेस कैंप से ही खड़ी ऊंचाई 3.5 किमी है। चिमनी हाउस पर कैंप-2, फिर ब्लैक पिरामिड से आगे कैंप-3 और के-2 पर्वत के शोल्डर (8000 मीटर) से 50 मीटर नीचे कैंप-4 (7950 मीटर) है।
  • टीमें बॉटलनेक (8210 मी.) होते हुए एब्रूजी से जाती हैं, लौटते हुए कैंप-3 व कैंप-4 आती हैं। यहां सबसे खतरनाक बोटलनेक है। पर्वतारोहियों को दो महीने सबसे दुर्गम ग्लेशियर में रहना होगा।

रणनीति: हर दिन 2-3 घंटे ही चढ़ाई कर पाते हैं पर्वतारोही
पर्वतारोहण की चुनौतियां बेस कैंप पहुंचने के पहले ही शुरू हो जाती है। इस्लामाबाद से बेस कैंप पहुंचने में ही 8 दिन लग जाते हैं। रास्ते में कहीं होटल नहीं है। पर्वतारोहियों को अपना सारा सामान खुद लेकर चलना होता है। कदम-कदम पर हिमस्खलन का खतरा बना रहता है।

तूफानी हवाएं चलती हैं। हर दिन महज दो से तीन घंटे ही चढ़ाई हो पाती है। बाकी समय या तो हिमस्खलन रहता है या बर्फीला तूफान आया रहता है। छांग बताते हैं कि पाकिस्तान सरकार से कई रियायतें मिलने के बावजूद एक पर्वतारोही के अपने खानपान, सामान आदि पर करीब 21 लाख रु. खर्च करने होते हैं।



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तस्वीर के-2 पर्वत के बेस कैंप 2 की है। इसे टेंट के अंदर से लिया गया है।


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